Bedwetting Problems :बच्चे को बेडवेटिंग हो सकता है रोगों का मुख्य कारण

Bedwetting Problems :जाने क्या है बेडवेटिंग का मुख्य कारण

1.रात भर में एकत्रित पेशाब को नहीं रख पाता है और बच्चे इस वजह से बिस्तर गिला कर देता है.

2. मूत्र संक्रमण : पेशाब में संक्रमण के कारण पीड़ित बच्चे को बार बार पेशाब होती है और वह रात में पेशाब को नियंत्रित नहीं कर पाता है . संक्रमण के कारण पेशाब में जलन होना बुखार बदन दर्द और बूंद-बूंद पेशाब होने जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं.

अनुवांशिकता: यह समस्या 4 में से 3 बच्चों अनुवांशिक कारणों से हो सकता है. शोध से पता चला है कि डीएनए में मौजूद क्रोमोजोम के कारण यह तकलीफ माता-पिता से बच्चों में होती है .कुछ बच्चों में हार्मोनल के कारण से भी ऐसा होता है. शरीर में मौजूद Antidiuret-ic हार्मोन किडनी को रात में कम पेशाब तैयार करने का संदेश देते हैं. इसकी कमी के कारण किडनी को यह संदेश नहीं मिलता है ,और रात में अधिक पेशाब तैयार होने से बच्चे बिस्तर गिला कर देते हैं , कई बार अकेले सोने, घर से दूर रहने, किसी की डांट से या परीक्षा के कारण होने वाले तनाव से भी वेड बैटिंग की समस्या देखने को मिलती है। कब्ज के कारण मूत्राशय पर अधिक दबाव से बच्चे नींद में पेशाब पर नियंत्रण नहीं रख पाता है.

4. तंत्रिका प्रणाली: तंत्रिका प्रणाली या नर्वस सिस्टम में गड़बड़ी होने पर मूत्राशय भरा होने के बावजूद दिमाग को यह संदेश नहीं मिल पाता है. टाइप वन डायबिटीज के शिकार बच्चों का पहला लक्षण बेडवेटिंग होता है .इसके अलावा अधिक भूख प्यास लगना और अच्छा आहार लेने पर भी वजन कम रहना डायबिटीज के लक्षण है.

बच्चे क्यों करते हैं बिस्तर गिला

रात में नींद में पेशाब कर बिस्तर गिला कर देना बच्चों में पाई जाने वाली आम समस्या है. इसे बेडवेटिंग या nocturnal enuresis कहा जाता है 3 या 4 साल की उम्र के बाद बच्चे मूत्राशय काबू पा लेते हैं पर कुछ बच्चों में यह प्रक्रिया जन्म जन्मातर तक रह जाती है ,और वह अनजाने बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं कभी-कभी यह समस्या किशोरावस्था में भी होती है, लड़कियां की तुलना में लड़कों में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है .इससे नींद का पैटर्न खराब हो जाता है. और नींद की कमी के कारण कई समस्या होती है.

बेड वेटिंग जांच व इलाज

सबसे पहले खून की जांच करते हैं, जिसमें शुगर लेवल और हारमोंस की जांच की जाती है. पेशाब की जांच में संक्रमण पेशाब में शुगर आदि देखा जाता है. एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड में किडनी संबंधित विकार की जांच की जाती है.

5. बचाव: शाम को बच्चे के तरल सीमित मात्रा में दे. सुबह हो या दोपहर को अधिक तरल पदार्थ दें ताकि शरीर में पानी की कमी ना हो कैफीन युक्त पेय पदार्थों और खाद्य पदार्थों से बचें यदि बच्चे को कब्ज की समस्या हो तो उसका इलाज करवाएं डायबिटीज के लक्षण दिखे तो जांच व इलाज कराएं बिस्तर गिला करने पर उसे डांटे नहीं समझाएं फाइबर युक्त आहार अधिक दे जैसे, ताजे फल हरी सब्जियां साबुत अनाज आदि. तेल मसाले वाले आहार कम दे मीठी चीजों से परहेज कराएं पेशाब में संक्रमण के लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

6. व्यायाम: मूत्राशय की क्षमता बढ़ाने के लिए बच्चे को दिन में पानी पिलाकर अधिक समय तक पेशाब रोकने को कहा जाता है .जब पेशाब ना रोक पाए तो पेशाब करने की सलाह दी जाती है व्यायाम विशेषज्ञ की देखरेख में करानी चाहिए

7. इलाज: कारण पता होने पर निदान संभव है 85 फीसदी बच्चे 5 साल की उम्र में पेशाब पर नियंत्रण करना सीख जाते हैं. ज्यादातर बच्चों को दवा की जरूरत नहीं पड़ती, पर संक्रमण या अन्य कारणों से ऐसा हो जाता तो इसकी इलाज जरूरी है.