Anjayti se chutkara kaise paye,aasan gharelu nuskhe

त्योहार आते ही कई लोगों को स्ट्रेस होने लगता है। जाहिर है, इनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है। लगभग 44 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि उन्हें हॉलीडे स्ट्रेस होता है। छुट्टी और त्योहार का मतलब उनके लिए आराम नहीं, बल्कि शॉपिंग, घर की साफ सफाई और साज-सज्जा और अच्छा खाना बनाना होता है। सबसे बड़ी समस्या होती है, परिवार, दोस्तों-रिश्तेदारों के बीच खुद को परफेक्ट और प्रेजेंटेबल दिखाना और सामाजिकता निभाना। त्योहार से पहले सारे काम ठीक ढंग से निपट जाएं, यह चिंता अकसर फेस्टिवल एंग्जाइटी में बदल जाती है।

स्त्रियों पर दबाव ज्यादा

दुनिया भर में घरेलू कार्यों का दवाव स्त्रियों पर सबसे अधिक है। यही कारण है कि मानसिक समस्याएं भी पुरुषों की तुलना में उन्हें अधिक होती हैं। कभी महिलाओं की आपस की बातचीत सुन कर देखें। उनकी 90 फीसदी बातें बच्चों की पढ़ाई, परिवार की जिम्मेदारियों, डोमेस्टिक हेल्प से जुड़ी समस्याओं, लॉन्ड्री, क्लीनिंग, शॉपिंग, बड़े-बुजुर्गों की हेल्थ के ही इर्द-गिर्द घूमती हैं। पुरुषों की बातों में घरेलू चिंताएं अपेक्षाकृत कम होती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चाहे-अनचाहे इन तमाम जिम्मेदारियों का भार महिलाओं के कंधों पर ही होता है। भारत में तो त्योहारों के अवसर पर महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे घर को पिक्चर परफेक्ट बना दें, खाने में छप्पन भोग बना दें, पारिवारिक सामाजिक रिश्ते निभाएं और फिर त्योहार की शाम सज-धज कर मुस्कराती नजर आएं। जरा ठहरें!  जीती-जागती स्त्री है, जो थकती है, उदास होती है और काम पूरा ना होने पर तनाव भी लेती है। कोई यह समझने की कोशिश नहीं करता कि सब कुछ परफेक्ट तरीके से निभाने के लिए स्त्रियों को कितने दबावों से गुजरना होता है।

काम के बीच आराम जरूरी

त्योहार सिर पर हैं और आप फिक्रमंद हैं कि अभी तो ठीक से घर की सफाई नहीं हुई, गिफ्ट्स नहीं लिए, शॉपिंग बाकी है… कैसे होगा सब ! अगर आप भी इस एंग्जाइटी से जूझ रही हैं तो यह लेख पढ़ें।


एंग्जाइटी से बचने के 5 टिप्स

खुद से कम अपेक्षा रखें जब हम सब कुछ खास तरीके से करना चाहते हैं तो इससे कुछ इमोशंस 1 ट्रिक होते हैं। महिलाएं अकसर सोचने लगती हैं, कुछ साल पहले तक घर को कितनी अच्छी तरह सजाती थीं या किचन में कितना कुछ बना लेती थीं। जब ये सारी बातें दिमाग में आती हैं तो स्ट्रेस बढ़ता है। अतीत में आप चाहे जितना कर पाती रही होगी, अब अपनाएं क्यों उम्र के साथ-साथ शरीर और मन की भी सीमाएं निर्धारित होती हैं। कामकानी स्त्रियों को घर के साथ ही बाहर की दुनिया को भी हैंडल करना होता है, जिसमें उनकी बेर सारी मानसिक-शारीरिक ऊर्जा खपती है। खुद से कम अपेक्षाएं रखें। जरूरी नहीं कि त्योहार पर खूब पकवान बनें। कुछ घर में बनाएं, कुछ आसान रेसिपीज तैयार करें और कुछ बाहर से मंगवाएं।

सामाजिकता सोच-समझ कर निभाएं त्योहारों के समय पर घर में आना-जाना लगा रहता है, खुद भी कई जगहों पर जाना पड़ता है। यहां आपको अपनी प्राथमिक और कहां हां कहना है और कहां ना भी कहने से बात नहीं बिगड़ेगी। अपनी क्षमताओं को समझें और जितना निभा सकती हैं, उतनी ही जिम्मेदारियां खुद पर लें। अपने समय और कायों के बीच तालमेल बनाएं।

अपनी प्रॉबलध समझें: फेस्टिवल एंग्जाइटी हो रही है तो इसे हल्के में ना लें। अपनों प्रॉब्लम को घर वाले के साथ शेयर करें। कई बार दिमाग में कई तरह की बातें चलती रहते हैं, शरीर और मन का है सिर दर्द या अचानक हाथ-पैरों में असामान्य दर्द महसूस होने लगता है, मगर पता नहीं चलता कि ऐसा क्यों हो रहा है। ज्यादातर मामलों में ये लक्षण एंग्जाइटी के होते हैं। ऐसे में अपनी भावनाएं परिजनों के संग बॉटें। उन्हें बताएं कि इतनी जिम्मेदारियों के बीच आप क्या महसूस कर रही हैं। इससे उन्हें आपके कार्यों का उनाव पता चल सकेगा। अगर बिना किसी से मदद मांगे या अपनी भावनाओं को शेअर किए चुपचाप काम करती रहेंगी और तनाव झेलती रहेंगी तो समस्या बढ़ जाएगी।

परंपराएं बोझ ना बनें: हर घर के कुछ उसूल, परंपराएं होते हैं। सभी परिवारों में कुछ ना कुछ भिन्न होता है। आपके मां-बाप के घर में कुछ अलग परंपराएं हों और जब आप शादी करके दूसरे घर जाएं तो वहां के रीति-रिवाज भिन्न हों। कई बार परिवारों के अपने भी कुछ संविधान होते हैं। समय के साथ कई परंपराएं पुरानी हो जाती हैं, लेकिन अकसर इन्हें रस्मअदायगी की तरह निभाया जाता रहता है। जरूरी यह भी है कि कुछ चीजों को समय के साथ बदला जाए। ऐसे आसान तरीके ढूंढ़ें कि परंपराएं भी निभा ली जाएं और किसी के लिए बोझ भी ना बनें। रिश्तों में मधुरता लाता है तो इसमें हर्ज कैसा !

दिनचर्या को बाधित ना होने दें भागदौड़ एक तरफ और मन को सुकून पहुंचाने वाली गतिविधियां एक तरफ। अपने फिटनेस और वेलनेस रिजीम को बिलकुल ना छोड़ें। भले ही कितनी भी व्यस्त हों, कोशिश करके थोड़ा समय सेल्फ केअर, वर्कआउट, मेडिटेशन या योग के लिए निकालें। अगर आम दिनों में ज्यादा वर्कआउट करती हैं तो थोड़ा कम करें, लेकिन पूरी तरह छोड़ें नहीं। कुछ नहीं कर पा रहीं, मॉर्निंग वॉक का टाइम नहीं है तो थोड़ी देर घर की बालकनी या छत पर बैठ कर डीप ब्रीदिंग करें, 5 मिनट हल्की स्ट्रेचिंग करें। इससे तनाव से मुक्त होने में मदद मिलेगी। घरेलू कार्यों को करते हुए लाइट म्यूजिक सुनें, इससे काम का दबाव कम महसूस होगा।

“त्योहारों का समय सबके लिए खुशियां मनाने का होता है, लेकिन महिलाओं के लिए स्ट्रेस और एंग्जाइटी का कारण बन सकता है, क्योंकि उन पर घरेलू कामों का दबाव बहुत बढ़ जाता है। वे इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि सेल्फ केअर और आराम के लिए वक्त नहीं निकाल पाते और इससे उनमें एंग्जाइ‌टी पैदा हो जाती है।”

टाइम का भी मैनेजमेंट जरूरी

हर काम की सही प्लानिंग करें और टाइम मैनेजमेंट करें। त्योहारों के मौके पर जरूरी कार्यों की चेकलिस्ट पहले से तैयार करें। प्राथमिकता के आधार पर इन्हें ऊपर से नीचे क्रम में रखें। जो-जो काम होते जाएं, उन्हें टिक लगाते जाएं। ज्यादा शारीरिक मेहनत वाले कामों के लिए घर के सदस्यों की मदद लें, या फिर गार्जियन अनुमति देती हो तो प्रीफेशनल हेल्प लें। कई एप्स हैं, जहां से आप अपनी सुविधानुसार सेवाएं प्राप्त कर सकते हैं। क्लीनिंग, पॉलिशिंग, पेटिंग, रिपेयरिंग जैसे तमाम कार्य आप अपने बजट में करा सकती हैं। टेरेस या बालकनी के लिए माली की सेवाएं ले सकती हैं। कामकाजी हैं और छुट्टी ज्यादा नहीं ले सकतीं तो अच्छा होगा कि थोड़े पैसे खर्च करके प्रोफेशनल मदद लें। घर के सदस्यों को छोटी-बड़ी जिम्मेदारी दें, बच्चों को हाथ बंटाने को प्रेरित करें। इससे उनमें उत्साह भी बना रहेगा और वे जिम्मेदारी भी सीखेंगे त्योहारों का उद्देश्य खुशियां मनाना-बांटना है। इसलिए छोटी-छोटी बातों को तूलना दें और परफेक्शन के जुनून में खुद को तनावग्रस्त ना करें अगर कुछ परेशानियां हैं तो घर के लोगों को बताएं। किसी से शिकायतें हैं तो जानें दें, माफ करना सीखे, घर के काम कभी खत्म नहीं होते हैं, । हमेशा कोई कमी महसूस होती रहेगी, इसलिए इन कामों की खातिर दिमाग में टैंशन नहीं ले। त्योहारों का मतलब खुद को बीमार बनाना नहीं, बल्कि व्यस्त जीवन में थोड़ सुकून पाना और रिश्तों को पुनर्जीवित करना है किचन में दो पकवान कम बनेंगे तो इससे गृहि सम्मान कम नहीं होगा  खुद का ध्यान रखें और त्योहार का आनंद लें।